आदि गुरु शंकराचार्य

शंकराचार्य उत्सव सेवालय

संस्था का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के परम संरक्षक आदि गुरु शंकराचार्य के दर्शन, आदेश, उपदेश, शिक्षाओं एवं कृतित्व को सनातन धर्म-संस्कृति के सतत प्रवाह हेतु प्रासंगिक बनाए रखने में धर्म सभा एवं प्रवचन के माध्यम से सनातनियों एवं सनातन धर्म प्रचारकों को सार्थक योगदान देना है।

आज हमारी संस्कृति अनेक चुनौतियां का सामना कर रही है, यथा:

- ज्ञान, दर्शन एवं अध्यात्म की ओर अग्रसर न होकर समाज अपेक्षाकृत अज्ञानता, अंधविश्वास तथा कर्मकाण्डों के चक्रव्यूह में उलझता गया है।

- इसी कारणवश संस्कारों व मूल्यों का ह्रास अति तीव्रता से हो रहा है। नई पीढ़ियां पाश्चात्य कुसंस्कारों के वशीभूत होकर आत्मबल को खो चुकी है।

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 वर्तमान चुनौतियां

आज पुनः जब विषम परिस्थितियां सनातन धर्म-संस्कृति के समक्ष चुनौतियां बन कर उठ रही हैं, तब आदि शंकराचार्य जी पुनः उतने ही प्रासंगिक हो उठे हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि उनका मार्गदर्शन और नेतृत्व ही सभी चुनौतियां का एकमात्र समाधान है। अतः सनातन धर्मावलंबियों को आदि गुरु की शिक्षाओं का अनुकरण करते हुए इस रूप में पुनः उनके आध्यात्मिक नेतृत्व को अंगीकार करना होगा।

इस कारण समाज मिथ्यावादी होकर अनुशासनहीनता, चरित्रहीनता, द्वंद्व, व्यसन, व्याभिचार एवं अपराध के दलदल में धंसता जा रहा है।

समाचार माध्यमों पर राजनीतिक दलों द्वारा 'सवर्ण बनाम दलित' जैसी भ्रांतियां उत्पन्न कर दी गई है, जो समाज के विघटन का कारण बन रही हैं। सनातन संस्कृति में चातुर्वर्ण्य अर्थात चार वर्णों की "कर्म" आधारित व्यवस्था है, जिसमें सभी चार वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र को समान रूप से "सवर्ण" माना गया है। कुरीतियों का अंत किया जाता है, संस्कृति का नहीं। अतः समाज को ऐसी चुनौतियों का भी सामना करना है।

विधर्मियों की चुनौती भी बढ़ती जा रही है। जाति-पाति इत्यादि कुछ कुरीतियों की आड़ लेकर विधर्मियों द्वारा संपूर्ण सनातन संस्कृति का विनाश कर देने की घोषणा सार्वजनिक मंचों से किया जाना अत्यंत चिंतनीय है।