आदि गुरु शंकराचार्य

श्री शंकराचार्य उत्सव सेवालय

कंपनी अधिनियम 2013 के धारा 8 के अंतर्गत पंजीकृत एक एनजीओ है ।

संस्था का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के परम संरक्षक आदि गुरु शंकराचार्य के दर्शन, आदेश, उपदेश, शिक्षाओं एवं कृतित्व को सनातन धर्म-संस्कृति के सतत प्रवाह हेतु प्रासंगिक बनाए रखने में धर्म सभा एवं प्रवचन के माध्यम से सनातनियों एवं सनातन धर्म प्रचारकों को सार्थक योगदान देना है। धर्म प्रचारकों के द्वारा सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने हेतु भारत के प्रत्येक क्षेत्र में सनातन धर्मावलंबियों को जागरूक करने व उन्हें साथ लेकर विभिन्न क्रियाकलापों का आयोजन करवाना संस्था के कार्यों में समाहित है।

सनातन संस्कृति

सनातन संस्कृति का आधार इसकी आत्मा के रूप में जीवंत इसका अत्यंत परिष्कृत वैज्ञानिक दर्शन है‌। यह सनातन वैदिक दर्शन इसके विविध संस्कारों, संस्थाओं, मान्यताओं, पूजा पद्धतियों, कर्मकाण्डों, उत्सवों एवं तीज-त्योहारों इत्यादि विभिन्न अंगों का निदेशक व प्राण तत्व है। चूँकि सनातन दर्शन का संरक्षण एवं संवर्धन संत समाज सदैव करता आया है। वस्तुतः यह संत समाज ही सनातन संस्कृति की धुरी है। इस व्यवस्था में शंकराचार्य पद सर्वोच्च है। शंकराचार्य ही सनातन धर्म व संस्कृति के सर्वोच्च गुरु एवं सर्वमान्य धर्मगुरु हैं‌।

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स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती '१००८'

जगद्गुरु शंकराचार्य

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित

चार वेदों में समाहित सनातन ज्ञान व दर्शन

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस व्यवस्था में वैदिक ज्ञान (चार वेदों में समाहित सनातन ज्ञान व दर्शन) को भारत के चार कोनों में चार मठों की स्थापना कर उनके मठाधीशो (शंकराचार्यों) के दायित्व में संरक्षित किया था, और तब से भारत में जितने भी संन्यासी हुए हैं, वह सभी इन मठों की प्रणाली से ही संबंध और निर्देशित हैं‌। यह संत समाज ही सनातन संस्कृति को प्रवाहमान बनाए हुए है। चार मठों से ही गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाह होता है। चार मठों के संतों ( दशनामी संप्रदाय ; भारती, गिरि, पुरी, सरस्वती, वन, तीर्थ, सागर, अरण्य, पर्वत एवं आश्रम) को छोड़कर अन्य किसी को गुरु बनाना संत धारा के अंतर्गत नहीं है। प्रत्येक संन्यासी दशनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है और शिष्य बनाता है।

अतः प्रत्येक सनातनी (हिंदू धर्मावलंबी) को इस व्यवस्था का उद्देश्य अवश्य जानना चाहिये। इससे अनभिज्ञ होना, सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ होने जैसा है‌। इससे अब तक अनभिज्ञ बने हुए सनातन धर्मावलंबियों को इसके प्रति भिज्ञ बनाने हेतु आवश्यक व्यवस्था करना ही श्री शंकराचार्य उत्सव सेवालय का ध्येय है। जिससे कि सनातन धर्मावलंबियों को आदि गुरु द्वारा स्थापित इस सोद्देश्य व्यवस्था से जोड़कर उनके धार्मिक, आध्यात्मिक, चारित्रिक, सामाजिक एवं भौतिक उत्थान को सुनिश्चित कर सनातन संस्कृति के सतत प्रवाह में उनकी अहम भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके।

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 वर्तमान चुनौतियां

आज पुनः जब विषम परिस्थितियां सनातन धर्म-संस्कृति के समक्ष चुनौतियां बन कर उठ रही हैं, तब आदि शंकराचार्य जी पुनः उतने ही प्रासंगिक हो उठे हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि उनका मार्गदर्शन और नेतृत्व ही सभी चुनौतियां का एकमात्र समाधान है। अतः सनातन धर्मावलंबियों को आदि गुरु की शिक्षाओं का अनुकरण करते हुए इस रूप में पुनः उनके आध्यात्मिक नेतृत्व को अंगीकार करना होगा।

आज हमारी संस्कृति अनेक चुनौतियां का सामना कर रही है, यथा:

  • ज्ञान, दर्शन एवं अध्यात्म की ओर अग्रसर न होकर समाज अपेक्षाकृत अज्ञानता, अंधविश्वास तथा कर्मकाण्डों के चक्रव्यूह में उलझता गया है।
  • इसी कारणवश संस्कारों व मूल्यों का ह्रास अति तीव्रता से हो रहा है। नई पीढ़ियां पाश्चात्य कुसंस्कारों के वशीभूत होकर आत्मबल को खो चुकी है।
  • इस कारण समाज मिथ्यावादी होकर अनुशासनहीनता, चरित्रहीनता, द्वंद्व, व्यसन, व्याभिचार एवं अपराध के दलदल में धंसता जा रहा है।
  • विधर्मियों की चुनौती भी बढ़ती जा रही है। जाति-पाति इत्यादि कुछ कुरीतियों की आड़ लेकर विधर्मियों द्वारा संपूर्ण सनातन संस्कृति का विनाश कर देने की घोषणा सार्वजनिक मंचों से किया जाना अत्यंत चिंतनीय है।
  • समाचार माध्यमों पर राजनीतिक दलों द्वारा 'सवर्ण बनाम दलित' जैसी भ्रांतियां उत्पन्न कर दी गई है, जो समाज के विघटन का कारण बन रही हैं। सनातन संस्कृति में चातुर्वर्ण्य अर्थात चार वर्णों की "कर्म" आधारित व्यवस्था है, जिसमें सभी चार वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र को समान रूप से "सवर्ण" माना गया है। कुरीतियों का अंत किया जाता है, संस्कृति का नहीं। अतः समाज को ऐसी चुनौतियों का भी सामना करना है।

इन समस्त चुनौतियों का समाधान आदि गुरु शंकराचार्य के अनुकरण से ही संभव हो सकता है। बारह सौ वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने काशी में चांडाल को दंडवत प्रणाम कर सामाजिक कुरीतियों पर ही तो प्रहार किया था। आज हमारे प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जब स्वच्छता कर्मियों के पांव धोते हैं, तब वह आदि गुरु शंकराचार्य का ही अनुसरण कर रहे होते हैं। अतः आदि गुरु आज भी उतने ही  प्रासंगिक हैं।